रूप विज्ञान
Sunday, October 23, 2016
Saturday, June 25, 2016
राजभाषा और राष्ट्रभाषा
राजभाषा और राष्ट्रभाषा
राजभाषा का अर्थ हैं संविधान द्वारा स्वीकृत सरकारी कम काज की भाषा। किसी देश में सरकारी कमकाज जिस भाषा में करने का निर्देश संविधान के प्रावधानों द्वारा दिया जाता हैं, वह उस देश की राज भाषा कही जाती हैं। भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया हैं, किंन्तु साथ में यह भी प्रावधान किया गया हैं कि अंग्रेजी भाषा में भी केंद्र सरकार अपना कम-काज तब तक कर सकती है जब तक हिंदी पूरी तरह से राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं की जाती ।
प्रारंभ में संविधान लागू होते समय सन 1950 में यह सीमा 15 वर्ष के लिए थी अर्थात अंग्रेजी का प्रयोग सरकारी कामकाज के लिए 1965 तक ही हो सकता था, किंतु बाद में संविधान संशोधन के द्वारा इस अवधि को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया। यही कारण है कि संविधान द्वारा राजभाषा घोषित किए जाने पर भी केंद्र सरकार का अधिकांश सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही हो रहा हैं और वह भी अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। सरकार की राजभाषा के अतिरिक्त राज्यों की राजभाषा के रूप में भी हिंदी का प्रयोग स्वीकृत है। जिन राज्यों की राजभाषा हिंदी है वे है– उत्तर प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा,मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड।
आई .ए. रिचर्ड्स
आई. ए रिचर्ड्स आलोचना के क्षेत्र में मूल्य और संप्रेषण के प्रबल पक्षपाती थे। उन्होंने कला और कविता की श्रेष्ठता का आधार संप्रेषण को ही स्वीकार किया है। उनके कथन का तात्पर्य यह हैं-
" संप्रेषण की दृष्टि से कलाएं (कविता की) उसका सर्वोत्कृष्ट रुप होती है मनुष्य एक सामाजिक जीव है वह सदा अपने अनुभवों को दूसरों के प्रति संप्रेषित करने और दूसरे के अनुभवों को जानने के लिए सदा से प्रवृत्त रहा हैं। अपने विकास क्रम में मनुष्य ने अपनी इस संप्रेषण प्रक्रिया के लिए कतिपय साधन उपलब्ध कर लिए हैं कलाएं इनमें सर्वाधिक महती रूप वाली है।"
कलाकार को (कवि को भी) रिचर्ड्स ने संप्रेषण कहा है। किसी भी कलाकार की कला का संप्रेषण पक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है-
" संप्रेषण (कम्युनिकेशन) का कार्य अत्यंत कठिन होता है। संप्रेषण ठोस वास्तु के समान नहीं होता हैं। कलागत (कवितागत) संप्रेषण भी वही संभव होता है जहां एक मस्तिष्क अर्थात कलाकार का मस्तिष्क अपने परिवेश पर ऐसा प्रभाव डालता है अथवा उसका संयोजन करता है कि दूसरा मस्तिष्क दर्शक या श्रोता उससे प्रभावित हो उठता है वह दूसरे मस्तिष्क अर्थात दर्शक या श्रोता के मस्तिष्क की स्थिति ठीक पहले मस्तिष्क अर्थात कलाकार अथवा कवि के मस्तिष्क की स्थिति के अनुरूप हो जाती है।
किसी वस्तु अथवा स्थिति के पूर्ण अवबोध के लिए कलाकार में (कवि में भी) जागरूक निरीक्षण शक्ति होनी चाहिए। कलाकार में साधारणता का भी गुण होना चाहिए उसके अनुभव अन्य व्यक्तियों के आरोपों से मेल से प्रस्तुत होकर ही संप्रेषणीय सकते हैं।"
रिचर्ड्स के अनुसार कलाकृति और कविता की प्रतिक्रियाएं एकरस होनी चाहिए उसमें भिन्नता नहीं होनी चाहिए तथा वे उत्तेजक कारणों द्वारा उत्पत्त किए जाने योग्य हो। रिचर्ड्स ने कलाकार के साधारण होने पर विशेष बल दिया है इसके अभाव में उनकी महत्वपूर्ण और मूल्यांकन वस्तु का संप्रेषण होना कठिन हो जाएगा क्योंकि ओसत स्तर से ऊपर या कम होने से ग्राहक उसे ग्रहण नहीं कर पाएगा किसी रचना अर्थात कविता की परीक्षा के लिए समिक्षक को विषय का पूर्ण बोध होना चाहिए। वह संप्रेषण की सफलता की परीक्षा तभी कर सकता है जब वह रचना को सम्यक रीति से पढ़ना जानता हो।
क्रोचे ने संप्रेषण को अनिवार्य ना बताकर उसे एक व्यवहारिक तथ्य माना है जबकि रिचर्ड्स इसे कला बहिर्गत मानकर एक धर्म मानते हैं क्योंकि सौंदर्य अनुभूति की सफलता संप्रेषण पर ही आधारित है। कलाकार और कवि की सफलता की कसौटी भी यही है कि वह जो चाहता था उसे दूसरे तक संप्रेषित कर सकता है या नहीं। संप्रेषणीयता से पृथक रहकर कला का उद्देश्य सार्थक नहीं हो सकता पाठकों में ग्राहिका शक्ति का होना भी एक अपेक्षित बात है।
रिचर्ड्स ने कहां है–" कविता के संप्रेषण का माध्यम है भाषा। भाषा के माध्यम से ही रिचर्ड्स ने पर्याप्त विचार किया है उसके अनुसार भाषा के दो भेद हैं- तथ्यात्मक और रागात्मक। कवि वैज्ञानिक के समान तथ्यों का शोध नहीं करता है। भाषा कुछ ऐसे प्रतीकों का समूह है जो श्रोता और पाठक के मन में कवि के मन के अनुरूप मनस्थिति को उत्पन्न करता हैं। रिचर्ड्स के अनुसार शब्द अपने में पूर्ण अथवा स्वतंत्र नहीं होते नाथ शब्द.....
नोट👉 अभी ये अर्ध लेख हैं जल्द ही इसे पूर्ण कर लिया जायेगा
जनसंचार की भाषा
जन संचार में भाषा मुख्य माध्यम है। भाषा के बिना संचार असंभव है। भाषा पहला विकसित माध्यम है जिसने जनसंचार की व्यवस्था दी। मानव जीवन में संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम भाषा हैं। भाषा के कारण ही जनसंचार माध्यमों की उपयोगिता में वृद्धि हो सकती है।
जनसंचार माध्यमों का भाषा के साथ निकटतम संबंध है मीडिया से सम्बंधित व्यक्ति के लिए भाषा की स्थिति से परिचित रहना आवश्यक है । देश काल की परिस्थिति के अनुसार भाषा बदलती रहती है। भाषा का एक स्थाई रुप नहीं है। भिन्न भिन्न एवं परिस्थितियों के अनुसार एक ही भाषा के विभिन्न रूप मिलते हैं। भाषा के विभिन्न रूपों से परिचित होकर मीडिया लेखन समाज के व्यापक हित में संचार माध्यमों का प्रयोग कर सकती है जनसंचार माध्यमों के विभिन्न प्रकार है। जन संचार के विभिन्न प्रकारों की भाषा अलग-अलग होती है।जैसे– जब किसी कहानी का नाट्य रूपांतरण या TV सीरियल के रूप में रूपांतरण किया जाता है तब उसके भाषा में परिवर्तन आ जाना स्वभाविक है।
(1)समाचार पत्र~ भारत में समाचार पत्रों का विकास लगभग 160 साल पुराना है। सन 1926 में कोलकाता से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र "उदंत मार्तंड" से लेकर आजतक समाचारों की भाषा में काफी परिवर्तन देखने को मिलता है। समाचार की भाषा कैसी हो इस बात को लेकर समय-समय पर मत भिन्नता रही है प्राचीनकाल में समाचारों की भाषा और वर्तमान कालों की भाषा में काफी भिन्नता दिखाई देती है अलग-अलग विषयों के लिए समाचारों की भाषा भी अलग-अलग होती है जैसे-
(1) राजनीतिक समाचारों की भाषा
(2)आर्थिक समाचारो की भाषा
(3)खेल जगत की समाचारों की भाषा
(4)फिल्म जगत के समाचारों की भाषा
(5)साहित्यिक समाचारों की भाषा
(6)संपादकीय लेखों की भाषा
(7)कार्टूनों एवं विज्ञापनों की भाषा
(8)तकनीकी की भाषा
वर्तमान समय के समाचार प्रसारण के चार चरण है~
समाचारपत्र, आकाशवाणी, समाचार चैनल, आदि। लेकिन इनके समाचार प्रस्तुत करने के ढंग अलग-अलग हैं। अलग-अलग समाचारपत्रों एवं चैनलों में समाचारों की भाषा अलग-अलग होती है।
उदाहरण के लिए 'नवभारत टाइम्स' को लिया जाता है। नवभारत में जहां हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वही नवभारतटाइम्स में हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण दिखाई देता है।
समाचार प्रस्तुत करते समय समाचार की भाषा कैसी होनी चाहिए इसे हम निम्न बातों में देख सकते हैं।
(क) समाचारों की भाषा कैसी होनी चाहिए जो पाठकों क्या श्रोताओं को तुरंत समझ में आ जाए क्योंकि अधिकांश पाठक या श्रोता इसे समझने में अपना समय नहीं गवाना चाहते।
(ख) समाचारों में जबरन हिंदी के कठिन शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाय साधारण बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।
(ग) अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का यदि अनुवाद न किया जाए तू भी पाठक उसे समझ सकता है। जैसे बटर कॉलेज जीरो फोटो आदि।
(घ) समाचार की भाषा सरल एवं शुद्ध होनी चाहिए। जिससे कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी आसानी से समझ सके और जिससे जन मान को लाभ पहुंचे।
(ड) समाचारों में क्षेत्रीय भाषा में प्रचलित शब्दों का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि समाचार पत्रों का पाठक अधिकांशत उसी क्षेत्र से होता है।
(च) समाचारों की भाषा में देशप्रेम, समाजसेवा, भाईचारा आदि को बढ़ावा देने वाली शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए न कि संवेदनशीलता सहिष्णुता तथा कट्टरता को बढ़ावा देने वाली।
(छ) समाचार लिखते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए कि उसकी भाषा में किसी व्यक्ति विशेष समुदाय जाति विशेष पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी न की जाय
(ज) शब्दों के लिए लिंग भेद का ध्यान रखा
जाए। जैसा~ समाचार वैसी भाषा का सिद्धांत अपनाया जाए। वर्तनी की शुद्धि अशुद्धि का ध्यान रखा जाए।
* समाचार पत्रों की भाषा~
समाचार पत्र मुद्रित कथा श्रव्य माध्यम के अंतर्गत आने वाला अत्यंत लोकप्रिय माध्यम है। यह संपूर्ण जनता के साथ जुड़ा हुआ प्रमुख माध्यम हैं। अतः इस के लिए आवश्यक है कि इसकी भाषा सहज एवं सरल हो। समाचार पत्रों का प्रकाशन जनमान लिए प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। जिसका जीता जागता उदाहरण हम सब लोग हैं। प्रातः काल दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से देश-विदेश की सारी घटनाएं सहज एवं सुबोध भाषा में हम पढ़कर अपने ज्ञान का विकास करते हैं इन समाचार पत्रों हमें मुख्य भूमिका समाचार संकलन कर्ता की होती है। समाचार संकलन कर्ता को संवाददाता कहते हैं संवाददाता को चाहिए कि जो भी घटना विशेष का चित्रण करता है उस समय की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए ताकि जिस क्षेत्र में वह समाचार पत्र भेजा जाता है वहां के लोगों को आसानी से समझ में आ जाए।
समाचार पत्रों के लिए सहज एवं सरल भाषा के प्रयोग पर बल दिया जाता है। इसमें यह निरंतर ध्यान रखा जाता है कि समाचार पत्रों की भाषा ऐसी हो जिसे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी सामान्य मजदूर तथा नौकर चाकर आसानी के साथ ग्रहण कर सके तथा उस भाषा रूप को समझ सके इसके बावजूद वैज्ञानिक दार्शनिक राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर लिखे जाने वाले लेखों की भाषा स्वभावतः कुछ कठिन हो सकती है क्योंकि इन विषयों को समझने के लिए पूर्व ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।
20 वीं सदी के पूर्वार्ध में संपादकों ने इसी मार्गदर्शिका के सिद्धांत पर चलते हुए हिंदी भाषा को संस्कारित किया।
Friday, June 24, 2016
कैसे तबाह हुआ था जापान
इस संदर्भ में आज मैं आपको यह बताऊंगा कि अमेरिका ने किस तरह से जापान पर परमाणु बम गिराया था। 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम गिराया था उस समय प्रातः काल का समय था सुबह सुबह सभी लोग उठकर अपने काम में लगे थे। राष्ट्रीय सुरक्षा दल के कार्यकर्ता एवं उच्च कक्षाओं के छात्र नगर की घनी बस्तियों में मकान तोड़ने के कारण इकट्ठे हो रहे थे, क्योंकि नगरपालिका ने यह फैसला सुनाया था कि नगर की घनी आबादी वाले क्षेत्रों के मकान गिरा दिए जाएं जिससे शत्रु द्वारा की जाने वाली बमबारी से लगने वाली आग का प्रभावशाली ढंग से मुकाबला किया जा सके। यह सब चल ही रहा था कि जापानी रेडियो ने यह सूचना प्रसारित की कि शत्रु के तीन बमवर्षक विमान तेसो नगर के ऊपर देखे गए हैं तथा वे पश्चिम में हीरोशिमा की ओर बढ़ रहे हैं, अतः हिरोशिमा के लोग पूरी सावधानी बरतें। रेडियो ने यह सूचना दोहरानी चाही परंतु उसे दोहराया नहीं जा सका और एक भयानक धमाके से पूरा हिरोशिमा कांप उठा धमाका होने के अगले ही क्षण पूरा नगर लगभग 6000 डिग्री की गर्मी से जलने लगा एक विशेष प्रकार की भयानक आग ने कुछ क्षणों के लिए सारे शहर को अपनी चपेट में ले लिया इसके उपरांत आस-पास में कई हजार मीटर की ऊंचाई पर बादल छा कर रेडियोधर्मिता उत्सर्जित करने लगे जिसके परिणाम स्वरुप तेज हवा के साथ मुसलाधार वर्षा होने लगी परंतु इस वर्षा में पानी के स्थान पर तेजाब की तरह तरल पदार्थ बरस रहा था। यह तेजाबी वर्षा लगभग 2 घंटे तक होती रही। परिणाम स्वरुप जापान का एक अति सुंदर नगर हिरोशिमा श्मशान में तब्दील हो गया। 40,000 कोरियाई मजदूरों के साथ विस्फोट केंद्र और उसके आसपास की सभी लोग विलुप्त हो गए हैं और 45 किलोमीटर की परिधि में रहने वाले लोग बुरी तरह से घायल हो गए बहुसंख्य घायल अंधे और बहरे हो गए थे। इनमे से बहुत से लोगों की चमड़ी पूरी तरह से जल गई थी, जिस कारण वह सीखते चिल्लाते मांस के लोथड़ों की तरह बहुत दिनों तक जिंदा रहे परंतु अंत में उन्हें काल के गाल में जाना ही पड़ा। क्योंकि लगभग 80% घायलों को तमाम कोशिशों के बाद भी बचाया नहीं जा सका।हा
, इस भीषण त्रासदी की कहानी सुनाने के लिए कुछ लोग दो 3 साल तक अवश्य जीवित बचे रहे। यदि वे लोग जीवित नहीं रहते तो हमें यह कौन बताता कि उस तेजाबी वर्षा की एक-एक बूंद से शरीर में तीर जैसी चुभन महसूस होती थी और ऐसी पीड़ा होती थी जैसे शरीर से मांस नोचा जा रहा है। हिरोशिमा बम विस्फोट के ठीक तीसरे दिन क्रूर दानवों ने जापान के दूसरे नगर नागासाकी पर भी कहर बरसाया जिससे लगभग 40000 लोगों ने अपने प्राण गवाए और 25000 लोग बुरी तरह से घायल हुए। हिरोशिमा में हुई जान हानि का आकलन भी म्युनिसिपल कमेटी ने अगस्त 1986 में प्रकाशित किया था। इसके अनुसार हिरोशिमा अणु बम विस्फोट में 1,18, 661 लोगों की मौत हुई थी, 799130 लोग घायल हुए थे और 36661 लोग लापता थे। इसके अलावा यह दोनों नगर परमाणु असंतुलन के दुष्प्रभाव को लंबे समय तक झेलते रहे। उनको पूरी तरह अब भी मुफ्त नहीं कहा जा सकता। अब जापानियों ने अपने परिश्रम से हिरोशिमा की सुंदरता को नया रूप दिया है। आज यह नगर विश्व का सबसे महत्वपूर्ण शांति स्मारक भी है ।
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