Saturday, June 25, 2016

आई .ए. रिचर्ड्स

आई. ए रिचर्ड्स आलोचना के क्षेत्र में मूल्य और संप्रेषण के प्रबल पक्षपाती थे। उन्होंने कला और कविता की श्रेष्ठता का आधार संप्रेषण को ही स्वीकार किया है। उनके कथन का तात्पर्य यह हैं-
           " संप्रेषण की दृष्टि से  कलाएं (कविता की) उसका सर्वोत्कृष्ट रुप होती है मनुष्य एक सामाजिक जीव है वह सदा अपने अनुभवों को दूसरों के प्रति संप्रेषित करने और दूसरे के अनुभवों को जानने के लिए सदा से प्रवृत्त रहा हैं। अपने विकास क्रम में मनुष्य ने अपनी इस संप्रेषण प्रक्रिया के लिए कतिपय साधन उपलब्ध कर लिए हैं कलाएं इनमें सर्वाधिक महती रूप वाली है।"

कलाकार को (कवि को भी) रिचर्ड्स ने संप्रेषण कहा है। किसी भी कलाकार की कला का संप्रेषण पक्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है-
      " संप्रेषण (कम्युनिकेशन) का कार्य अत्यंत कठिन होता है। संप्रेषण ठोस वास्तु के समान नहीं होता हैं। कलागत (कवितागत) संप्रेषण भी वही संभव होता है जहां एक मस्तिष्क अर्थात कलाकार का मस्तिष्क अपने परिवेश पर ऐसा प्रभाव डालता है अथवा उसका संयोजन करता है कि दूसरा मस्तिष्क दर्शक या श्रोता उससे प्रभावित हो उठता है वह दूसरे मस्तिष्क अर्थात दर्शक या श्रोता के मस्तिष्क की स्थिति ठीक पहले मस्तिष्क अर्थात कलाकार अथवा कवि के मस्तिष्क की स्थिति के अनुरूप हो जाती है।
किसी वस्तु अथवा स्थिति के पूर्ण अवबोध के लिए कलाकार में (कवि में भी) जागरूक निरीक्षण शक्ति होनी चाहिए। कलाकार में साधारणता का भी गुण होना चाहिए उसके अनुभव अन्य व्यक्तियों के आरोपों से मेल से प्रस्तुत होकर ही संप्रेषणीय सकते हैं।"
रिचर्ड्स के अनुसार कलाकृति और कविता की प्रतिक्रियाएं एकरस होनी चाहिए उसमें भिन्नता नहीं होनी चाहिए तथा वे उत्तेजक कारणों द्वारा उत्पत्त किए जाने योग्य  हो। रिचर्ड्स ने कलाकार के साधारण होने पर विशेष बल दिया है इसके अभाव में उनकी महत्वपूर्ण और मूल्यांकन वस्तु का संप्रेषण होना कठिन हो जाएगा क्योंकि ओसत स्तर से ऊपर या कम होने से ग्राहक उसे ग्रहण नहीं कर पाएगा किसी रचना अर्थात कविता की परीक्षा के लिए समिक्षक को विषय का पूर्ण बोध होना चाहिए। वह संप्रेषण की सफलता की परीक्षा तभी कर सकता है जब वह रचना को सम्यक रीति से पढ़ना जानता हो।

     क्रोचे ने संप्रेषण को अनिवार्य ना बताकर उसे एक व्यवहारिक तथ्य माना है जबकि रिचर्ड्स इसे कला बहिर्गत मानकर एक धर्म मानते हैं क्योंकि सौंदर्य अनुभूति की सफलता संप्रेषण पर ही आधारित है। कलाकार और कवि की सफलता की कसौटी भी यही है कि वह जो चाहता था उसे दूसरे तक संप्रेषित कर सकता है या नहीं। संप्रेषणीयता से पृथक रहकर कला का उद्देश्य सार्थक नहीं हो सकता पाठकों में ग्राहिका शक्ति का होना भी एक अपेक्षित बात है।
       रिचर्ड्स ने कहां है–" कविता के संप्रेषण का माध्यम है भाषा। भाषा के माध्यम से ही रिचर्ड्स ने पर्याप्त विचार किया है उसके अनुसार भाषा के दो भेद हैं- तथ्यात्मक और रागात्मक। कवि वैज्ञानिक के समान तथ्यों का शोध नहीं करता है। भाषा कुछ ऐसे प्रतीकों का समूह है जो श्रोता और पाठक के मन में कवि के मन के अनुरूप मनस्थिति को उत्पन्न करता हैं। रिचर्ड्स के अनुसार शब्द अपने में पूर्ण अथवा स्वतंत्र नहीं होते नाथ शब्द.....

नोट👉 अभी ये अर्ध लेख हैं जल्द ही इसे पूर्ण कर लिया जायेगा

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