जन संचार में भाषा मुख्य माध्यम है। भाषा के बिना संचार असंभव है। भाषा पहला विकसित माध्यम है जिसने जनसंचार की व्यवस्था दी। मानव जीवन में संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम भाषा हैं। भाषा के कारण ही जनसंचार माध्यमों की उपयोगिता में वृद्धि हो सकती है।
जनसंचार माध्यमों का भाषा के साथ निकटतम संबंध है मीडिया से सम्बंधित व्यक्ति के लिए भाषा की स्थिति से परिचित रहना आवश्यक है । देश काल की परिस्थिति के अनुसार भाषा बदलती रहती है। भाषा का एक स्थाई रुप नहीं है। भिन्न भिन्न एवं परिस्थितियों के अनुसार एक ही भाषा के विभिन्न रूप मिलते हैं। भाषा के विभिन्न रूपों से परिचित होकर मीडिया लेखन समाज के व्यापक हित में संचार माध्यमों का प्रयोग कर सकती है जनसंचार माध्यमों के विभिन्न प्रकार है। जन संचार के विभिन्न प्रकारों की भाषा अलग-अलग होती है।जैसे– जब किसी कहानी का नाट्य रूपांतरण या TV सीरियल के रूप में रूपांतरण किया जाता है तब उसके भाषा में परिवर्तन आ जाना स्वभाविक है।
(1)समाचार पत्र~ भारत में समाचार पत्रों का विकास लगभग 160 साल पुराना है। सन 1926 में कोलकाता से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र "उदंत मार्तंड" से लेकर आजतक समाचारों की भाषा में काफी परिवर्तन देखने को मिलता है। समाचार की भाषा कैसी हो इस बात को लेकर समय-समय पर मत भिन्नता रही है प्राचीनकाल में समाचारों की भाषा और वर्तमान कालों की भाषा में काफी भिन्नता दिखाई देती है अलग-अलग विषयों के लिए समाचारों की भाषा भी अलग-अलग होती है जैसे-
(1) राजनीतिक समाचारों की भाषा
(2)आर्थिक समाचारो की भाषा
(3)खेल जगत की समाचारों की भाषा
(4)फिल्म जगत के समाचारों की भाषा
(5)साहित्यिक समाचारों की भाषा
(6)संपादकीय लेखों की भाषा
(7)कार्टूनों एवं विज्ञापनों की भाषा
(8)तकनीकी की भाषा
वर्तमान समय के समाचार प्रसारण के चार चरण है~
समाचारपत्र, आकाशवाणी, समाचार चैनल, आदि। लेकिन इनके समाचार प्रस्तुत करने के ढंग अलग-अलग हैं। अलग-अलग समाचारपत्रों एवं चैनलों में समाचारों की भाषा अलग-अलग होती है।
उदाहरण के लिए 'नवभारत टाइम्स' को लिया जाता है। नवभारत में जहां हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वही नवभारतटाइम्स में हिंदी और अंग्रेजी का मिश्रण दिखाई देता है।
समाचार प्रस्तुत करते समय समाचार की भाषा कैसी होनी चाहिए इसे हम निम्न बातों में देख सकते हैं।
(क) समाचारों की भाषा कैसी होनी चाहिए जो पाठकों क्या श्रोताओं को तुरंत समझ में आ जाए क्योंकि अधिकांश पाठक या श्रोता इसे समझने में अपना समय नहीं गवाना चाहते।
(ख) समाचारों में जबरन हिंदी के कठिन शब्दों का इस्तेमाल करने के बजाय साधारण बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए।
(ग) अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का यदि अनुवाद न किया जाए तू भी पाठक उसे समझ सकता है। जैसे बटर कॉलेज जीरो फोटो आदि।
(घ) समाचार की भाषा सरल एवं शुद्ध होनी चाहिए। जिससे कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी आसानी से समझ सके और जिससे जन मान को लाभ पहुंचे।
(ड) समाचारों में क्षेत्रीय भाषा में प्रचलित शब्दों का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए क्योंकि समाचार पत्रों का पाठक अधिकांशत उसी क्षेत्र से होता है।
(च) समाचारों की भाषा में देशप्रेम, समाजसेवा, भाईचारा आदि को बढ़ावा देने वाली शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए न कि संवेदनशीलता सहिष्णुता तथा कट्टरता को बढ़ावा देने वाली।
(छ) समाचार लिखते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए कि उसकी भाषा में किसी व्यक्ति विशेष समुदाय जाति विशेष पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी न की जाय
(ज) शब्दों के लिए लिंग भेद का ध्यान रखा
जाए। जैसा~ समाचार वैसी भाषा का सिद्धांत अपनाया जाए। वर्तनी की शुद्धि अशुद्धि का ध्यान रखा जाए।
* समाचार पत्रों की भाषा~
समाचार पत्र मुद्रित कथा श्रव्य माध्यम के अंतर्गत आने वाला अत्यंत लोकप्रिय माध्यम है। यह संपूर्ण जनता के साथ जुड़ा हुआ प्रमुख माध्यम हैं। अतः इस के लिए आवश्यक है कि इसकी भाषा सहज एवं सरल हो। समाचार पत्रों का प्रकाशन जनमान लिए प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। जिसका जीता जागता उदाहरण हम सब लोग हैं। प्रातः काल दैनिक समाचार पत्रों के माध्यम से देश-विदेश की सारी घटनाएं सहज एवं सुबोध भाषा में हम पढ़कर अपने ज्ञान का विकास करते हैं इन समाचार पत्रों हमें मुख्य भूमिका समाचार संकलन कर्ता की होती है। समाचार संकलन कर्ता को संवाददाता कहते हैं संवाददाता को चाहिए कि जो भी घटना विशेष का चित्रण करता है उस समय की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए ताकि जिस क्षेत्र में वह समाचार पत्र भेजा जाता है वहां के लोगों को आसानी से समझ में आ जाए।
समाचार पत्रों के लिए सहज एवं सरल भाषा के प्रयोग पर बल दिया जाता है। इसमें यह निरंतर ध्यान रखा जाता है कि समाचार पत्रों की भाषा ऐसी हो जिसे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी सामान्य मजदूर तथा नौकर चाकर आसानी के साथ ग्रहण कर सके तथा उस भाषा रूप को समझ सके इसके बावजूद वैज्ञानिक दार्शनिक राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर लिखे जाने वाले लेखों की भाषा स्वभावतः कुछ कठिन हो सकती है क्योंकि इन विषयों को समझने के लिए पूर्व ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।
20 वीं सदी के पूर्वार्ध में संपादकों ने इसी मार्गदर्शिका के सिद्धांत पर चलते हुए हिंदी भाषा को संस्कारित किया।